ज़िंदगी थम सी गई है ।
पहले वाले सुहावने दिनों ने कह दिया है बाय- बाय !!!
अब तो घर के चहुँ ओर लक्ष्मण- रेखा है,
पांव बढ़ाया नहीं कि रावण का ख्याल आता है ।
***
अब आते हैं वो दिन याद, जब हमें केश- कर्तनालय
में " चंदू- नाई" द्वारा प्रवचित दिव्य-ग्यान प्राप्त होता था ।
'चुनावी माहौल' से लेकर सचिन की बल्लेबाजी, 'पप्पु के जोक्स' से लेकर 'मोदीजी' के राजनैतिक फैसलों की व्याख्या,वह चुटकी बजाते कर लेता था ।
" चंदू- नाई" की विद्याभंडार और विभिन्न दर्शनग्राही चाह देखकर तो हम केशकर्तन ग्राहकगण दातों तले उँगली दबाते रह जाते हैं ।
" चंदू- नाई" की ज्ञान-परिधि असीमित है । अपने ज्ञान बंटन के मध्य ज़नाब अपने उस्तरे को विश्राम देते हैं, तत्पश्चात वे अपने जेब से प्लास्टिक की एक पुड़िया निकालकर उसके अंदर रखे खैनी को बाएं हाथ में लेकर एक चमचमाती डिबिया
दूसरे जेब से निकालते हैं।डिबिया में रखे सफेद चुना लेकर खैनी को अपने अंगूठे से अच्छी
तरहा मसलते हैं, फिर दो तीन बार धमाधम दूसरी हथेली से खैनी को ठोकते हुए बाएं हथेली के दो उँगली से अपने निचले होंठ को
दबाकर दाहिने हाथ में रखे खैनीचूना मिश्रण को मुख में अर्पण करते हैं ।कुछ देर में उनके मुख पर एक अजीब सी दिव्य आभा मंडराती है, हमें
ज्ञात हो जाता है कि उनके मस्तिष्क में विचार तरंगों को फिर से गति
मिल गई है ।उनके ज्ञान सागर में लहरें पुन: ज्वारभाटा की तरह उछल रहीं हैं।
अब ज़नाब फिर से अपना व्याख्यान आरंभ कर देते हैं।
अब की बार शब्द मुख में स्थित खैनी से छनकर निकलते हैं और
कर्तनालय में मौजूद हम सभी अज्ञानी श्रोतागण फिर से मंत्रमुग्ध हो "चंदुलाल" की वाणी का श्रवण करते हुए ज्ञानसागर में गोता
लगाने लगते हैं ।
कोई भी व्याख्यान में खलल डाले 'चंदुभैया' को यह कतई ना भाता है । उसके मुताबिक इससे उसका लिंक टूट जाता है।फिर भी हमने एक दिन हिम्मत कर पूछ ही लिया,
" चंदू भैय्या,आप यह खैनी खाना बंद क्यों नहीं कर देते?"
" चंदू- नाई" ने तपाक् से जवाब दिया, " क्यूं बंद करें? "
हमने कहा, " आईना देखो ।"
अब केश कर्तनालय में तो आईनों की कमी नहीं, जिधर देखो, उधरआईना ।
" चंदू- नाई" ने आईने में झांका ।माथा देखा, आँखें देखी, गाल देखे, ठुठनी भी देखी, केश भी देखे, फिर कहा, "क्यूं, सब ठीक ही तो है।"
हमने कहा, "चंदू भैय्या, अपना मुख तो खोलिए"
" लो खोला"
"अब अपनी दंतावली देखिए"।
"देख लिया"
"क्या देखा? "
"कुछ गलत नहीं, सब कुछ सही है", चंदुलाल ने भरोसे से कहा ।
"आपकी दंतावली देखिए महाराज, सफेद दांत घिस- घिस कर पीले और कत्थई रंग के हो गए हैं"।
" चंदू- नाई" का दिमाग चकराया, उसने अपने दांत तो देखे थे,
लेकिन ख्याल नहीं किया था कि इतने घिस गए ।
रुंऑसे सूरत से कहा, " अब का करें डाक्साब"।
अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे, मैंने सोचा ।अब दर्शन शास्त्र में गोता लगाने की बारी मेरी थी ।
उत्साहित होकर कहा "दांत ही नहीं खराब होते,चंदू भैय्या, मुख में कर्क रोग भी हो सकता है ।"
"ये करक रोग का होत है, डाक्साब ? "
"कर्क रोग यानी कैन्सर"
जन साधारण आज हिंदी से ज्यादा अंग्रेजी समझता है ।अब मेरी बात चंदू- नाई के पल्ले पड़ी ।
"कैन्सर !"
"हां, कैन्सर । मुख का कैन्सर, गले का कैंसर, अन्न नली का कैंसर और जो धुम्रपान करते हैं, उनको फुफ्फुसीय यानी छाती का कैंसर ।"
"लेकिन का करें डाक्साब, मुंआ ये आदत ही ना छुटे ।" चंदू- नाई अपना भरोसा खो चुका था ।
"धीरज से और मन की शक्ति से काम लोगे, तब ना छुटेगा, ये
मुंआ गंदा आदत," मैंने कहा।
****
" कॉरोना" के चलते आज जब सभी पान की दुकानें बंद हैं, तमाकू मिलना दुर्लभ है ।अब का रोना, यानी काहे को रोना? मौका तो अच्छा है, ये गंदा आदत त्याग कर दो ।
आप सब सुधी लोगों से भी हाथ जोड़ विनति है, सुध में आएं,
तमाकू, खैनी, पाऊच, पान, धुम्रपान, और हां, मदिरा पान भी छोड़ दें, दंतावली चमकेगी, कैंसर का पीछा छुटेगा, घर बरबाद होने से
बचेगा ।
"कॉरोना के लॉकडाऊन" का फायदा तो उठाएं |
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मौका वाकई में अच्छा है ।
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